Rishabh Shetty: 70 वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड के तहत ‘कांतारा’ फेम कन्नड़ स्टार और डायरेक्टर ऋषभ शेट्टी को बेस्ट एक्टर घोषित किया गया है। इन दिनों वह ‘कांतारा 2’ में बिजी हैं। ऋषभ ने इस खास बातचीत में अवॉर्ड मिलने की खुशी और अपने सफर पर खास बातचीत की।
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नेशनल अवॉर्ड की अनाउंसमेंट के बाद सबसे अच्छी प्रशंसा क्या मिली ?
सोशल मीडिया से काफी प्रशंसा मिल रही है। सबसे अच्छी तो यही कि कभी एक मिनरल वाटर डिस्ट्रीब्यूटर रहा इंसान आज नेशनल अवॉर्ड हासिल कर चुका है। वह भी वैसे गांव से ताल्लुक रखने वाला जो बैंगलोर से 500 किलोमीटर दूर जंगल का इलाका है। उन्हीं जंगलों में ‘कांतारा’ को शूट भी किया था।
Rishabh Shettyआगे कौन से प्रोजेक्ट कर रहे हैं?
अभी ‘कांतारा 2’ की शूटिंग चल रही है। ये तय है कि इसे अगले साल आना है। डेट होम्बले फिल्म्स वाले अनाउंस करेंगे। ‘कांतारा’ के बाद बहुत सारे फिल्म मेकर्स ने कहानियां सुनाई हैं लेकिन ‘कांतारा 2’ खत्म होने तक कोई दूसरा प्रोजेक्ट नहीं कर सकता।
बॉलीवुड से आपको प्रोड्यूसर्स ने बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए अप्रोच किया है?
मैं नंबर के बारे में बात नहीं करूंगा लेकिन बहुत लोगों ने अप्रोच किया है। बहुत सी कहानियां भी मैंने सुनी है लेकिन फिलहाल मेरा पूरा ध्यान ‘कांतारा 2’ पर है। यकीनन कुछ चीजों को मैंने कंसीडर भी किया है लेकिन वो बाद के लिए हैं। अभी मैं ज्यादा ओवरलैप करने के लिए अपकमिंग प्रोजेक्ट्स नहीं कर रहा हूं
क्या बचपन से एक्टर बनने का सपना था और आपका संघर्ष कैसा रहा?
बचपन में मैं लोककथाओं पर बेस्ड प्लेज में हिस्सा लेता था। हालांकि फिल्मों में कैसे मौका मिलेगा, वह नहीं पता था। फिर बैंगलोर में मैंने कॉलेज में थिएटर किया। एक्टिंग में भी ट्राई किया पर 10 साल लग गए मुझे मौका मिलने में। इस दौरान कई नौकरी कीं। होटल में काम किया, एक प्रोडक्शन हाउस में ऑफिस बॉय भी रहा। वहां मेरी सैलरी तक भी नहीं मिली थी। इसी दौरान हिंदी भी सीखी। मैंने अपने सपने को मरने नहीं दिया। फिर बैंगलोर आ गया। साल 2013 में मुझे रक्षित शेट्टी मिले। वहां से एक नई जर्नी शुरू हुई।
‘केजीएफ’ और ‘कांतारा’ के बाद कन्नड़ इंडस्ट्री कितनी बड़ी हो गई है?
पहले भी हम हर साल एवरेज 300 फिल्में बनाते थे और औसतन थिएट्रिकल रिलीज 240 होती थीं। अब बाहर जो मार्केट है, उसमें ‘केजीएफ’ और ‘कांतारा’ को एक अच्छा एक्सपोजर मिला, लेकिन दूसरी फिल्में भी एक्सप्लोर करनी हैं। हालांकि कन्नड़ के हिसाब से आप देखेंगे तो ओटीटी और टीवी राइट्स को लेकर बहुत प्रॉब्लम चल रही है। कन्नड़ कंटेंट के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और बाकी लोग ओपन तो नहीं हैं।
‘केजीएफ’ और ‘कांतारा’ में काफी वॉयलेंस है, फिर फीमेल ऑडियंस के लिए क्या होता है ऐसी फिल्मों में?
केजीएफ’ में मां-बेटे की भी कहानी है। ‘कांतारा’ में होकर भी बड़ी प्रोग्रेसिव है। 90 के दशक में उसने फॉरेस्ट अफसर की जॉब की। पति गायब हो जाता है तो बेटे को लेकर उसका क्या अप्रोच है, वह दिखाया गया है। बाकी एक्शन, म्यूजिक आदि तो इंडियन फिल्मों की खूबसूरती है। वह रखा ही जाता है।
हिंदा फिल्मो से किसे फॉलो करते हैं?
सलीम-जावेद की राइटिंग को पसंद करता हूं। उनकी बहुत सारी फिल्म्स को फॉलो करता हूं। फिर अमिताभ बच्चन, संजय लीला भंसाली और रामगोपाल वर्मा को भी बहुत फॉलो किया है।
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‘कांतारा’ को जो अवॉर्ड मिला, वह पहले आर्टिस्टिक फिल्मों को मिलता था लेकिन पिछले 8 से 10 साल में कुछ चेंज दिख रहा है?
मुझे लगता है कि राजामौली की फिल्म ‘बाहुबली’ हो, ‘आरआरआर’ हो या मेरी ‘कांतारा’, सभी में आर्ट है। ‘कांतारा’ एक आर्ट फिल्म जैसी है लेकिन मैंने दर्शकों को एंगेज करने के लिए इसमें कई सारे एलिमेंट्स रखे। इसका कोर कंटेंट प्री-आर्टिस्टिक था। मेरा मानना है कि पूरा आर्ट भी नहीं होना चाहिए और पूरा कमर्शियल भी नहीं। मेरे हिसाब से सिनेमा, सिनेमा होता है। उसमें कमर्शियल या आर्ट जैसा कुछ नहीं हैं, कोई फर्क नहीं है।
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